Wednesday, December 1, 2010

Munshi Premchand Birthday Celebration - Creative Writting



मुंशी प्रेमचंद जन्मोत्सव पर लेखन कार्यशाला आयोजित -
प्रख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से बच्चों को रूबरू करवाने के लिए प्रेमचंद के जन्मोत्सव पर बाल भवन जयपुर में दो दिवसीय सर्जनात्मक लेखन कार्यशाला 30 व 31 जुलाई, 2010 आयोजित की गयी। प्रथम दिन बच्चों को प्रेमचंद के साहित्य से अवगत करवाते हुए लेखक विशेषग्य डॉक्टर दुर्गा प्रसाद जी अग्रवाल और डॉक्टर हेतु भारद्वाज ने बताया कि प्रेमचन कि कहानियों के पात्र, पात्र न हो कर समाज की व्यवहारिकता का आईना हें। जिसके माध्यम से आपके दिल में प्रवेश करके आपके मन को बदलता हे। प्रेमचंद के पात्रों, परिवेश का हर पड़ने वाले को समयानुसार अनुभूति होती हे और सत्य की अभिव्यक्ति, साहित्य से ही संभव हे। इसको हम विज्ञानं और एतिहासिक तथ्यों से सिद्ध नही कर सकते।
विशेषज्ञों ने प्रेमचंद के समय परिवेश विचारों की जानकारी देते हुए कहा की प्रेमचंद की लेखनी ने समाज के म्रत्प्राय स्वरूप में शहीदी बारूद का कम किया। जिसके कारण अंग्रेजों ने उनकी पुस्तकों पर पाबंदी लगा दी थी।
बच्चों को प्रेमचंद की लिखी हुए छोटी-छोटी कहानियों की किताबे पड़ने को दी। जिसमे बच्चों को इन कहानियों के परिवेश, वातावरण और पात्रों की मनोस्थ्ती पर अपने विचारों को अभिव्यक्त करना था।
दुसरे दिन ३१ जुलाई को प्रथम सत्र में बच्चों ने प्रेमचंद की बाल रचनाओं 'बड़े भाईसाब', 'गुल्ली डंडा', 'ईदगाह', 'कुत्ते की कहानी', दो बेलों की कथा', 'बड़े घर की बेटी', चतुर सुजान', आदि पर रोचक चर्चा करते हुए इन कहानियों के कथानक में आने वाले परिद्रश्य एवं संवाद रचना पर बच्चों ने अपने-अपने विचारों को रखा।
अगले सत्र में बच्चों को कहानी कैसे लिखे, किन बातों का ध्यान रखा जाए और आस-पास के परिदर्श को कैसे रेखांकित किया जाए की जानकारी देते हुए विशषज्ञों ने बताया की लेखन कार्य ब्रह्मा के बराबर हे और इसके लिए जिन्दगी को गहराई से महसूस करना होगा। अपनी स्वं की जिंदगी से रूबरू होने के साथ हमें आत्मविश्वास को जाग्रत करने पर ही लिखने के लिए कलम चलानी चाहिए।
प्रख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से बच्चों को रूबरू करवाने के लिए प्रेमचंद के जन्मोत्सव पर बाल भवन जयपुर में दो दिवसीय सर्जनात्मक लेखन कार्यशाला 30 31 जुलाई, 2010 आयोजित की गयीप्रथम दिन बच्चों को प्रेमचंद के साहित्य से अवगत करवाते हुए लेखक विशेषग्य डॉक्टर दुर्गा प्रसाद जी अग्रवाल और डॉक्टर हेतु भारद्वाज ने बताया कि प्रेमचन कि कहानियों के पात्र, पात्र हो कर समाज की व्यवहारिकता का आईना हेंजिसके माध्यम से आपके दिल में प्रवेश करके आपके मन को बदलता हेप्रेमचंद के पात्रों, परिवेश का हर पड़ने वाले को समयानुसार अनुभूति होती हे और सत्य की अभिव्यक्ति, साहित्य से ही संभव हेइसको हम विज्ञानं और एतिहासिक तथ्यों से सिद्ध नही कर सकते
विशेषज्ञों ने प्रेमचंद के समय परिवेश विचारों की जानकारी देते हुए कहा की प्रेमचंद की लेखनी ने समाज के म्रत्प्राय स्वरूप में शहीदी बारूद का कम कियाजिसके कारण अंग्रेजों ने उनकी पुस्तकों पर पाबंदी लगा दी थी
बच्चों को प्रेमचंद की लिखी हुए छोटी-छोटी कहानियों की किताबे पड़ने को दीजिसमे बच्चों को इन कहानियों के परिवेश, वातावरण और पात्रों की मनोस्थ्ती पर अपने विचारों को अभिव्यक्त करना था
दुसरे दिन ३१ जुलाई को प्रथम सत्र में बच्चों ने प्रेमचंद की बाल रचनाओं 'बड़े भाईसाब', 'गुल्ली डंडा', 'ईदगाह', 'कुत्ते की कहानी', दो बेलों की कथा', 'बड़े घर की बेटी', चतुर सुजान', आदि पर रोचक चर्चा करते हुए इन कहानियों के कथानक में आने वाले परिद्रश्य एवं संवाद रचना पर बच्चों ने अपने-अपने विचारों को रखा
अगले सत्र में बच्चों को कहानी कैसे लिखे, किन बातों का ध्यान रखा जाए और आस-पास के परिदर्श को कैसे रेखांकित किया जाए की जानकारी देते हुए विशषज्ञों ने बताया की लेखन कार्य ब्रह्मा के बराबर हे और इसके लिए जिन्दगी को गहराई से महसूस करना होगाअपनी स्वं की जिंदगी से रूबरू होने के साथ हमें आत्मविश्वास को जाग्रत करने पर ही लिखने के लिए कलम चलानी चाहिए

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